शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

यूं ही भुला दी जाएगी देसी बॉयज

फिल्मः देसी बॉयज ()
निर्देशकः रोहित धवन
कास्टः अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम, चित्रांगदा, दीपिका पादुकोण, अनुपम खेर
स्टारः ढाई स्टार, 2.5

अंतत: रोहित धवन ने 'देसी बॉयज’ में कुछ भी नया क्रिएट नहीं किया है। उनके इमोशनल करने और हमें एंगेज रखने के तरीके में पिता डेविड धवन की फिल्मों का अंश दिखता है। वहीं कहानी, कैरेक्टर्स के सोचने का ढंग और मैसेज एकदम हॉलीवुड फिल्मों सा है। बावजूद इसके कि फिल्म मुझे बहुत औसत लगी, रोहित का निर्देशन टेक्नीकली कहीं भी कमजोर नहीं पड़ता। हां, क्लाइमैक्स में दो-चार झोल-झाल हैं। उन्होंने एक्टर्स के काम निकलवाया है, सीन कम्युनिकेटिव रखे हैं, गानों को फिल्माने में बहुत सारे रंग बरते हैं। तेरे पीछे आया मैं... गाने की ही बात करें तो जॉन-दीपिका के पीछे नाचते दर्जनों विदेशी डांसर, डेविड की 'राजा बाबू’ और 'साजन चले ससुराल’ जैसी दर्जनों फिल्मों के सॉन्ग पिक्चराइजेशन की याद दिलाते हैं। पर टाइटल से लेकर कहानी तक हमें कुछ भी नया नहीं लगता। मेल एस्कॉर्ट का कॉन्सेप्ट इंडिया की ऑडियंस (कुछेक अंग्रेजी बोलने वाले यूथ को छोड़ दें तो) के लिहाज से अनफिट लगता है। ये तो जैरी के कैरेक्टर में अक्षय के अपने नैफ्यू वीर के साथ और गुजरात में रहने वाली मां के साथ जो इमोशनल कनेक्शन है, हम उसी में सेंटी हो जाते हैं, वरना कहानी में जॉन-अक्षय के मर्द वेश्या बनने और फैंसी डांस करने में कुछ कनविंसिंग नहीं है। फैमिली के साथ देखने के लिए ये फिल्म नहीं है। यंगस्टर्स अपनी-अपनी समझदारी पर जा सकते हैं, वैसे नहीं भी देखेंगे तो कुछ मिस नहीं करेंगे। रोहित धवन के पास निर्देशक के तौर पर बाकी सब कुछ है, बस दिशा नहीं है। उनके एंटरटेनमेंट की आप परिभाषा देखिए, जैरी सुबह नाश्ते में कॉर्नफ्लैक्स में दूध डालता है और दूध पूरा नहीं होता तो शैंपेन मिला देता है, ये महज कूल लगता ही है, है नहीं। या फिर जॉन का अक्षय को कहना कि जितना तू अपने जूते का साइज (मेल एस्कॉर्ट बनने वाले फॉर्म पर साइज के कॉलम में अक्षय का किरदार जैरी 11 लिख आता है) लिखकर आया है न उससे कल सुबह शहर की सारी लड़कियों की लाइन लग जाएगी। अगर हम अपनी फिल्मों को 'कॉमेडी सर्कस’ या 'रास्कल्स’ जितनी औकात तक न समेटें तो इंडियन सिनेमा के सुनहरे पल सृजित हो सकते हैं और ये होना दर्शकों और फिल्ममेकर्स पर निर्भर करता है।

मंदी में मेल प्रॉस्टिट्यूट बनने की कथा
इंडिया से यूके पढऩे आए थे जैरी (अक्षय कुमार) और निक (जॉन अब्राहम)। कई साल बीत गए और अब दोनों दोस्त लंदन के अपार्टमेंट में साथ रहते हैं। जैरी का पूरा नाम जिग्नेश पटेल है और निक का निखिल माथुर। निक इनवेस्टमेंट बैंकर है और जैरी चूंकि ग्रेजुएट नहीं है इसलिए छोटा-मोटा काम करता है। निक की मंगेतर राधिका अवस्थी (दीपिका पादुकोण) है तो जैरी की जिंदगी में उसका नन्ना सा नैफ्यू वीर (शरमन जैन) है। जब ब्रिटेन में मंदी का असर होता है तो दोनों की नौकरी चली जाती है। वीर की स्कूल फीस भरने और उसकी कस्टडी बनाए रखने के लिए निक को पैसे चाहिए। नहीं तो उसे किसी फॉस्टर फैमिली को दे दिया जाएगा। ऐसे में शहर की सबसे मशहूर मेल एस्कॉर्ट (मर्द वेश्या) कंपनी होने का दावा करते उसके मालिक (संजय दत्त) इन दोनों को जॉब ऑफर करते हैं। मगर पैसे आने के बावजूद दोनों अपनी सबसे कीमती चीजों को खो देते हैं। बाकी कहानी इनके उन चीजों को हासिल करने के बारे में है। फिल्म में इकोनॉमिक्स प्रफेसर तान्या मेहरा (चित्रांगदा सिंह) और राधिका के पिता सुरेश (अनुपम खेर) के किरदार भी हैं।

कुछ सीन और रोल के अंदर...
# मां (भारती आचरेकर) हर बार गुजरात से बेटे जिग्नेस को फोन करती है। बेटा गुजराती में जवाब देता है और हम हंसते हैं। क्लाइमैक्स के दौरान वह बेटे की ग्रेजुएशन सेरेमनी में भी आती है और वो सीन एंटरटेनिंग है। निक
से अपनी 15 साल की दोस्ती तोडऩे के लिए वह बेटे को चांटा लगाते हुए कहती है, 'अगर तू उसे माफ नहीं करेगा तो मुझे लगेगा कि तुझे पैदा करके मैंने अपना फिगर यूं ही खराब किया।
# अनुपम खेर के रूप में एक पिता है जो बेटी के बॉयफ्रेंड के साथ पूल में लेटे-लेटे नशीली सिगरेट पी रहा है और हमें हॉलीवुड मूवी के किसी सीन का सेंस दे रहा है। उसकी अजीब सी शेव की हुई मूछें और खुद को फॉर्मर गायनेकॉलोजिस्ट कहना पर वैसा बिल्कुल भी लग पाना भी वैसा ही माजरा है।
# अजय बापट के रोल में 'थ्री इडियट्स’ की स्टैंप लिए ओमी वैद्य आते ही चौंकाते हैं, लगता है कि लो, तुम इस फिल्म में भी हो। यहां के बाद से वो घिसे-पिटे लगते हैं।
# संजय दत्त का ये कहना कि मां, बहन और बीवी को अपने-अपने रिश्तों में खुशी तो मिलती है। पर उनके अंदर की औरत को जो खुशी चाहिए वो हम देसी बॉयज ही देते हैं। अगर नहीं समझ आया बापट, तो अपनी सातों बहनों के मुस्कराते चेहरों को देख लेना तुम्हें पता चल जाएगा। ये डायलॉग ढीला और बेहुदा है।
# रा रा री री... 'खलनायक फिल्म की ये धुन संजय दत्त की आहट को शायद सबसे ज्यादा ड्रमैटिक बनाती है। रोहित धवन ने यहां इसका यूज किया।
# जो लोग दीपिका पादुकोण की अकड़ी हुई असहज एक्टिंग से परेशान रहते हैं, उन्हें इस फिल्म में भी परेशानी ही मिलेगी, बस एक आंसू बहाने वाले सीन को छोड़ दें तो। चित्रागंदा को सेंशुअस और ग्लैमरस इकोनॉमिक्स प्रफेसर लगना था और वो लगीं भी। वैसे उनका रोल उतना डिफाइन किया हुआ नहीं था, क्लाइमैक्स में उनका जिगनेस की मां के सामने गुजराती बोलना मुस्कान देता है।
# जॉन और अक्षय की एक्टिंग हमेशा जैसी है। डायरेक्टर रोहित ने उनके किरदारों को बीच-बीच में अलग करते स्ट्रोक दिए हैं। जैसे, जॉन की गर्लफ्रैंड दीपिका के साथ अक्षय के किरदार का चिढ़े रहने वाला रिश्ता।

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गजेंद्र सिंह भाटी