बुधवार, 25 अप्रैल 2012

"मायापुरी पढ़के अचानक ही नहीं चला आया था बॉम्बे, काम को पॉलिश करके आया था: पित्तोबाश"

पित्तोबाश त्रिपाठी ने राजकुमार हीरानी की फिल्म 'थ्री इडियट्स' में जूनियर स्टूडेंट का छोटा सा रोल किया था, याद करने के लिए शायद डीवीडी फॉरवर्ड करके देखना पड़े। मगर अगले साल उनकी दो ऐसी फिल्में आई जिन्होंने उनका करियर बदल कर रख दिया। पहली थी नील माधव पांडा की 'आई एम कलाम' और दूसरी राज निदिमोरू-कृष्णा डीके द्वारा निर्देशित 'शोर इन द सिटी'। दूसरी फिल्म में मंडूक के रोल के लिए उन्हें 'बेस्ट एक्टर इन अ कॉमिक रोल' के कई अवॉर्ड इस साल मिले। उड़ीसा के पित्तोबाश ने भुवनेश्वर से 12वीं तक की पढ़ाई की। फिर कोलकाता से इंजीनियरिंग करने के बाद पुणे के नामी संस्थान फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया से एक्टिंग में तीन साल का कोर्स किया। मुंबई में आने के छह महीने के भीतर उन्हें 'मिर्च' फिल्म में पहला रोल ऑफर हो गया था। उनकी आने वाली फिल्मों में शिरीष कुंदर की 'जोकर' और दिबाकर बैनर्जी की 'शंघाई' जैसे बड़े नाम हैं। दो दिन पहले ही उन्होंने अपने ड्रीम एक्टर अमिताभ बच्चन के साथ एक हेयर ऑयल की ऐड फिल्म शूट की है। प्रस्तुत हैं मौजूदा वक्त के कुछ बेहद काबिल युवा अभिनेताओं में से एक पित्तोबाश से बातचीत के कुछ अंश, विस्तृत बातों का कारवां भविष्य के गर्भ में कभी आने वाली विस्तृत साक्षात्कारों की श्रंखला में:

स्ट्रग्ल नहीं करना पड़ा?
इस प्रफेशन में असुरक्षाएं तो हमेशा रहेंगी, लेकिन आप आते हो। मैं मायापुरी पढ़के अचानक यूं ही नहीं आ गया था। इंजीनियरिंग पढऩे के साथ पांच साल थियेटर किया कोलकाता में। फिर तीन साल फिल्म ट्रेनिंग, पूना से। अपने काम को अच्छी तरह पॉलिश करके फिर मुंबई आया।

'आई एम कलाम' से लेकर 'शोर इन द सिटी' तक, हर किरदार अलग कैसे बना? अलग कैसे बनता है?
तीन चीज हैं, ऑब्जर्वेशन, इमैजिनेशन, कॉन्सनट्रैशन। आप चीजें ऑब्जर्व करते हो और कल्पना मिलाकर किरदार को एक रूप देते हो। फिर ध्यान केंद्रित करके परफॉर्म करते हो। यह तो मूल चीज हो गई। लेकिन घिसना तो पड़ेगा। उसी चीज को करते-करते आपकी वॉयस ट्रैनिंग होगी, इमैजिनेशन पावर तेज होगी, आप कैरेक्टराइजेशन करना भी समझेंगे।

रोल मिलने और शूटिंग शुरू होने के बीच क्या करते हैं?
मुझे किरदार का 90 फीसदी स्क्रिप्ट से मिलता है। बस पढ़ते रहिए। हर बार किरदार के बारे में नया जानेंगे। उसे जोड़ते रहिए और अपने किरदार का एक स्कैच सा बनाते रहिए। उसके पीछे की कहानी कि वह ऐसा क्यों हो गया है? फिर उसकी बॉडी लेंग्वेज, डायलेक्ट, लुक, एक्सेंट और सोच पर मेहनत होती है।

मैथड एक्टिंग करना और जैसे हो वैसे ही रिएक्ट करके एक्ट करना, इन दोनों शैलियों में फर्क है?
कई तरह की एक्टिंग स्कूल हैं। जैसे माइजनर (अमेरिकी थियेटर कलाकार) की अलग है। स्टैनिस्लावस्की (पहला एक्टिंग सिस्टम इजाद करने वाले) का मैथड भी है। मैं स्टैनिस्लावस्की मैथड फॉलो करता हूं। अभिनय की दुनिया में 90 फीसदी स्वीकार्य तरीका यही होता है। मैं हमेशा क्या करता हूं, कि मान लीजिए पुलिस का रोल मिला। तो मैं ऐसे नहीं सोचता हूं कि खुद पुलिस होता तो क्या करता। मैं सोचता हूं कि एक लाख पुलिस होती है और मैं उनमें से एक हूं तो मैं कैसे व्यवहार करूंगा।

मौजूदा अच्छे एक्टर?
कई हैं। मसलन 'शैतान' में जो लड़के थे, या जो लिक्विड था 'प्यार का पंचनामा' में।

'शोर इन द सिटी' के लिए जब बेस्ट कॉमिक रोल का अवॉर्ड आपको मिला तो शो एंकर कर रहे शाहरुख खान ने क्या कहा?
फंक्शन के बाद उन्होंने कहा कि तेरा नाम बड़ा मुश्किल है यार। पता नहीं मैंने उच्चारण सही किया था कि गलत। मैंने कहा, मुश्किल तो है पर इसीलिए तो आप शाहरुख खान हैं, क्योंकि आपने बिल्कुल सही बोला। उन्होंने बधाई दी और कहा कि तुम्हें सिल्वर स्क्रीन पर और भी ज्यादा देखना चाहता हूं।

कोई एक्टिंग में आना चाहे तो...
घास भी काटते हो तो ट्रेनिंग की जरूरत है। पहले पढ़ाई लिखाई करो, फिर अच्छी ट्रेनिंग लो, फिर आओ। ऐसे ही मुंह उठाकर चले आना गलत बात है। यहां कोई रिटायर नहीं होता। कि 200 सीटें हैं और 100 रिटायर हो गए और खाली हो गईं। मैं जिस दिन बॉम्बे इंडस्ट्री में आया तब भी अमिताभ बच्चन वहां थे, जितने लोग हैं वो सब थे, लेकिन आपको प्रूव करना पड़ेगा कि मैं भी आउंगा।

बिना इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लिए नहीं आ सकते?
सीखने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि इंस्टिट्यूट से ही आएं। कोई 15 साल थियेटर करके आते हैं कोई 10 साल। लेकिन फिल्म में आते हो तो मीडिया की ट्रेनिंग लेनी बहुत जरूरी है। करोड़ों रुपये खर्च होते हैं एक फिल्म में, अब कोई आपको सिखाने के लिए तो वहां बैठा नहीं है। एक शॉट रीटेक होता है आपकी वजह से, तो पांच लोग चिल्लाते हैं।

स्टार्स की औलादों के बारे में लोग कहते हैं कि उन्हें एक्टिंग नहीं आती। आपने तुषार के साथ 'शोर इन..' में काम किया। लगा नहीं कि यार इसे तो एक्टिंग नहीं आती?
अब फ्रेम में मेरा और तुषार दोनों का काम अच्छा था तभी तो उन्हें भी सराहा गया और फिल्म भी अच्छी गई। मैं कोशिश करता हूं कि किसी के साथ काम कर रहा हूं तो उस सीन में हम दोनों बेस्ट करें ताकि सीन अच्छा निकले।

भारत और वल्र्ड सिनेमा में ऐसी फिल्में जो आपको खूब पसंद हैं और लोगों को देखनी चाहिए?
एमेरोस पेरोस, सिटी ऑफ गॉड, बर्थ ऑफ नेशन, चिल्ड्रन ऑफ हैवन, राशोमोन, बाबेल, पल्प फिक्शन, कागज के फूल, गरम हवा, दो बीघा जमीन, मदर इंडिया, आवारा.

निर्देशकों में किसका काम पसंद है?
जॉनर के हिसाब से। थ्रिलर में श्रीराम राघवन इज द बेस्ट। कमाल। इंडियन सिनेमा में अगर आप थ्रिलर की बात करेंगे तो मैं उदाहरण दूंगा 'एक हसीना थी' का। डॉर्क जॉनर में विशाल भारद्वाज हैं। एंटरटेनमेंट और कंटेंट में राजकुमार हीरानी कमाल हैं।
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गजेंद्र सिंह भाटी