शनिवार, 15 जनवरी 2011

लवली देओल्स और कुछ कमियां

फिल्मः यमला पगला दीवाना
डायरेक्टरः समीर कर्णिक
कास्टः धर्मेंद्र, सनी देओल, बॉबी देओल, कुलराज रंधावा, नफीसा अली, सुचेता खन्ना, अनुपम खेर, मुकुल देव, पुनीत इस्सर
स्टारः ढाई 2.5


इस फिल्म पर लिखना मेरे लिए कुछ उलझन भरा रहा। उलझन इसके एंटरटेनमेंट को डिफाइन करने की। पंजाबी सेंटिमेंट्स वाली ऑडियंस के लिए 'यमला पगला दीवाना' एक फन राइड है। देओल फैमिली के फैन्स भी देखकर खुश होंगे। मगर ओवरऑल ये काफी कमियों वाली मूवी है। मुकेश ठाकुर की ढीली एडिटिंग और समीर कर्णिक का बिखरा डायरेक्शन 'यमला पगला दीवाना' में स्टोरीटेलिंग फैक्टर को मार देता है। कुछ देखने लायक रहता है तो मुकुल देव, सनी देओल और सुचेता खन्ना के निभाए कैरेक्टर। सनी वैंकूवर से आए परमवीर सिंह के रोल में मूवी को एक साथ थामे रहते हैं। बिल्ला के कैरेक्टर में मुकुल देव का ठेठ पंजाबी एक्ट और कैनेडा ड्रीम्स में खोई भोली के रोल में सुचेता इस फालूदा फिल्म में ताजगी ले आते हैं। पंजाबी ऑडियंस के लिहाज से मैं मूवी को साढ़े तीन स्टार दूंगा, मगर अपनी रेटिंग में ढाई स्टार रख रहा हूं।
कहानी क्या है?
परमवीर सिंह ढिल्लों (सनी) अपनी वाइफ मैरी (एमा ब्राउन गैरेट) और दो बच्चों के साथ वैंकूअर कैनेडा में रहते हैं। अपनी मां (नफीसा अली) की इच्छा पूरी करने और बीस साल पहले घर छोड़ गए पिता और छोटे भाई को खोजने वो बनारस जाते हैं। यहां भाई गजोधर (बॉबी) और पिता (धरम सिंह) मिल तो जाते हैं, पर दोनों अव्वल दर्जे के ठग हैं। इन्हें सही रास्ते पर लाना है और मां के पास ले जाना है। परमवीर की इस कोशिश के बीच गजोधर और साहिबा (कुलराज रंधावा) की लव स्टोरी है। साहिबा के भाई जोगिंदर (अनुपम खेर), बिल्ला (मुकुल देव), जरनैल (हिमांशु मलिक) और एक-दो दूसरे भाई हैं। मूवी थोड़ा-थोड़ा रुलाती है, पर क्लाइमैक्स समेत ज्यादातर टेंशन फ्री ही रखती है। कहानी से ज्यादा जोर टुकड़ों-टुकड़ों में बंटी हंसी पर ही रहता है।
इससे बेहतर डिजर्व करते हैं धर्मेंद्र
पल-पल न माने टिंकू जिया, इसक का मंजन घिसे है पिया... इस आइटम नंबर में धर्मेंद्र और बॉबी की एंट्री होती है। यहां धर्मेंद्र की प्लेसमेंट और उनका इस्तेमाल परेशान करता है। लंपट और लड़कियों के इर्द-गिर्द मंडराने वाले धरम सिंह से उस धर्मेंद्र को अलग करना मुश्किल हो जाता है, जिसे मूवी में देखने सब आए हैं। परमवीर सिंह, गजोधर और धरम सिंह भी असल में हमें सनी, बॉबी और धर्मेंद्र ही लगते हैं। तीनों को असली रिश्ते से अलग करके नहीं देख पाते हैं। धर्मेंद्र के कैरेक्टर को बिना लॉजिक डिवेलप किया गया है। धरम सिंह बुरे क्यों हैं? ये नहीं बताया जाता। बीवी को क्यों छोड़ देते हैं? नहीं बताया जाता। छोटे बेटे गजोधर को शराबी और अय्याश क्यों बना देते हैं? ये भी नहीं बताया जाता। शुरू से लेकर क्लाइमैक्स तक गजोधर यानी बॉबी धर्मेंद्र को ओए धरम तू बड़ा कमीना है यार... कहते दिखते हैं। ये कॉमिक अंदाज समझ में नहीं आता, न ही डायरेक्टर समीर इस लाइन का संदर्भ बताते हैं।
हैंडपप वाला हीरो जमा
मूवी में स्क्रिप्ट से ज्यादा देओल्स की फैन फॉलोइंग और जट फैक्टर काम करता है। तीनों देओल में सिर्फ सनी का कैरेक्टर ही थियेटर स्क्रीन पर खुद के 'सनी देओल' इम्प्रेशन को जी पाता है। वो हैंडपंप लेकर नाचते हैं तो भी लॉजिकल लगता है, जट रिस्की ऑफ्टर बाल्टी विस्की... डायलॉग बोलते हैं उस वक्त भी लॉजिकल लगते हैं। परमवीर सिंह का उनका कैरेक्टर भी इस इल्लॉजिकल मूवी में खरा लगता है। पूरी फिल्म में सनी के जितने भी एग्रेसिव होने वाले सीन आते हैं उनमें ऑडियंस को एड्रेनलिन रश होता है। उनके कुछ स्टंट्स सम्मोहित करने वाले हैं।
यमला पगला.. गाना और मूवी
प्रोमो में दिखने और सुनाई पडऩे वाले 'प्रतिज्ञा' फिल्म के गाने मैं जट यमला पगला दीवाना... से मूवी की कहानी का कोई लेना देना नहीं है। सोनू निगम इस रीमिक्स में मोहम्मद रफी वाली नक तो नहीं ला पाते, पर क्लासिक वेल्यू की वजह से ये गाना इस मूवी में भी एक्साइट करता है। फिल्मांकन में सनी 'जीत' फिल्म के यारा ओ यारा मिलना हमारा... के डांस स्टेप करते हैं, तो धर्मेंद्र कुछ नए और कुछ 'प्रतिज्ञा' के ही इस असली गाने के स्टेप दोहराने की कोशिश करते है। बॉबी के लिए बचते हैं उनकी पहली फिल्म 'बरसात' के डांस स्टेप्स।
कैरेक्टर्स कम-बेशी
इन ढाई घंटों में किसी को सीरियसली ले पाते हैं तो सिर्फ सनी देओल और मुकुल देव (गुरमीत उर्फ बिल्ला) को। जोगिंदर सिंह बने अनुपम खेर भी हमेशा की तरह अपने कॉमिकल कैरेक्टर को सही से निभा जाते हैं। गजोधर और धरम सिंह की तरह उनकी दाढ़ी नकली भी नहीं लगती। परमवीर सिंह के छोटे बेटे का 'डिट्टो' कहने का अंदाज थियेटर से बाहर आने के बाद भी याद रहता है। धर्मेंद्र और नफीसा अली की जोड़ी 'मेट्रो' मूवी के उनके कपल की याद दिलाती है। पर क्लाइमैक्स में उनके मिलने के सीन में फिल्ममेकर ने गंभीरता नहीं बरती। बीस-तीस साल बाद अपनी बीवी से मिल रहा एक दोषी पति कम से कम एक आंसू तो बहा ही सकता था। एमा ब्राउन और कुलराज रंधावा के यादगार रोल तो नहीं हैं, पर जरूरत जितना काम दोनों कर जाती हैं। भोली के किरदार में सुचेता खन्ना छाप छोड़ती हैं। कैनेडा की दीवानी भोली हूबहू 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की प्रीति जैसी है। यहां आकर कहानी भी ऐसी ही हो जाती है। तीनों देओल का एक सीन जिसमें सनी शराब पी रहे बॉबी से उनकी मां के बारे में पूछते हैं और जवाब में बॉबी धर्मेंद्र को देखकर कहते हैं कि यही मेरी मां और बाप है। इस लिहाज से कि वो इसमें अपने पिता के सामने एक्ट कर रहे थे, बॉबी का ये फिल्म में बेस्ट सीन रहा।
असर भी होता है
'यमला पगला दीवाना' के शुरू में मजाक का पात्र बनते हैं मारवाड़ी (जानी लीवर), मारवाड़ी (भंवरलाल, धरम सिंह का एक फर्जी भेष) और नेपाली (एक बच्चा)। मुझे लगता था कि बॉलीवुड के फिल्ममेकर अब शायद समझदार हो चुके हैं और कम्युनिटी या राज्य विशेष को लेकर अब वो घिसे-पिटे मजाक नहीं करेंगे। पर यहां समीर कर्णिक मुझे गलत साबित करते हैं। मजाक में ही सही ये चलन अच्छा नहीं है। माना कि तेरी भेण दी... एक फनी पंजाबी मुहावरा सा है... पर वहां भी इसे बुरा ही माना जाता है। परमवीर के दो छोटे बच्चे इस मुहावरे को बोलते और लड़ते दिखते हैं तो उनकी गोरी मैम बीवी भी बीच-बीच में विदेशी एक्सेंट के साथ ये लाइन बोल जाती हैं। फिल्म-फिल्म में ये दोष भी मनोरंजन की सीरिंज में भरकर दर्शकों को इंजेक्ट कर दिया जाता है।
आखिर में...
पंजाब के मिर्जा-साहिबा की प्रेम कहानी का जिक्र है, जो स्क्रिप्ट में पहली इनोवेटिव चीज है। चढ़ा दे रंग... अच्छे बोल और अच्छे म्यूजिक वाला गाना है। फिल्मांकन में इसके कुछ शॉट बेहद खूबसूरत लगते हैं। धर्मेंद्र के लिखे इस गाने में कोरियोग्रफी तो खास नहीं बन पाई पर बोल हैं...कड्ड के बोतल डब्बे चो, जट मुंह नूं जग लावे, होये डफली बज्जे आपो आप, ते नशा सुरम चढ़ जावे।
गजेंद्र सिंह भाटी